होली भारत और नेपाल में बहुत ही धूम धाम से मनाया जाता है इसको मानने के पीछे हिन्दू
धर्म की एक पुरानी कथा है और रिसर्च से पता चला है कि इसके कुछ साइंटिफिक रेअसोंस भी हैं
कथा
बहुत समय पहले की बात है भारत में राजा हुआ करता था जिसका नाम था हिरण्यकश्यप वो तीनो लोको पृथ्वी,स्वर्ग और पाताल पर राज्य करना चाहता था इसके लिए उसने ब्रम्हा जी की तपस्या की काफी तपस्या के बाद ब्रम्हा जी प्रकट हुए और उससे
कहा,"वत्स वर मांगो क्या चाहते हो" हिरण्यकश्यप ने कहा कि प्रभु मुझे अमर कर दो तो ब्रम्हा जी ने कहा कि ऐसा वरदान तो नहीं दिया जा सकता कुछ और मानगो तो उसने कहा कि प्रभु मुझे वरदान दो कि मुझे न कोई इंसान मार सके न कोई जानवर कीड़ा और न ही कोई भगवन मार सके मुझे न घर के अंदर मारा जा सके न घर के बहार न मुझे दिन में कोई मार सके न ही रात में और न ही मुझे किसी हथियार से मारा जा सके. ब्रम्हा जी ने ये आशीर्वाद दे दिया जिससे हिरण्यकश्यप को लगने लगा की अब तो वो अमर हो गया अब उसे कौन मार सकता है. वो अपने राज्य वापस आया और लोगो से कहने लगा की वो भगवन की पूजा करना छोड़ कर अब उसकी पूजा करें क्यूंकि वही भगवान है और जो उसकी बात नहीं मन उसको मरवा दिया उसका अत्याचार पुरे राज्य में बहुत ज्यादा बढ़ गया था धीरे धीरे उसका अत्याचार बढ़ गया और उसने स्वर्ग पर हमला कर दिया और उस पर भी अधिकार कर लिया.
कुछ दिनों के बाद उसको एक लड़का हुआ जिसका नाम प्रह्लाद था वो स्वाभाव से बहुत शांत और साधारण था उसे अपने ऊपर थोड़ा भी घमंड न था उसके पिता ने जब उससे कहा कि वही तीनो लोको के भगवन है तो प्रहलाद ने कहा की नहीं तीनो लोको के भगवान् तो भगवान् विष्णु है उनके सिवा कोई नहीं है और मेरा तो आपसे भी यही कहना है की आप भी उनकी पूजा किया करिये ज़िंदगी सफल हो जाएगी. बेटे की इस बात से हिरण्यकश्यप को बहुत गुस्सा आया लेकिन उसने किसी तरह खुद पर काबू किया, कुछ दिनों के बाद
प्रहलाद को शिक्षा के लिए गुरुकुल भेजा गया,हिरण्यकश्यप ने प्रहलाद के गुरूजी से कहा कि इसको समझा दीजिये कि इस संसार का भगवान् मै ही हूँ कुछ दिनों की शिक्षा के बाद जब गुरूजी प्रहलाद को लेकर वापस घर आये तो उन्होंने बताया कि ये इस बात को मानने को ही तैयार नहीं की आप भगवान्



हैं और तो और इसने गुरुकुल के और भी बच्चों को बिगाड़ दिया है और सबसे कहता फिरता है की भगवान् तो विष्णु हैं ये सुनकर हिरण्यकश्यप को गुस्सा आ गया और उसने सैनिकों को आदेश दिया कि इसे लेजाकर पहाड़ी से नीचे फ़ेंक दो. सैनिकों ने ऐसा ही किया लेकिन प्रहलाद बच गए और वो वापस आ गए और अपने पिता से कहा की अभी भी वक़्त है आप भगवन विष्णु की शरण में चले जाईये और आप मुझे मार नहीं पाएंगे क्युकी मेरी रक्षा भगवान् विष्णु करते हैं. हिरण्यकश्यप ने आदेश दिया की इसे हाथी के पैरो के नीचे ले जाकर दाल दो. सैनिकों ने ऐसा ही किया लेकिन हाथी ने उन्हें कुचला ही नहीं और वो फिर बच गए. अब हिरण्यकश्यप ने अपने बहन होलिका को बुलाया जिसको वरदान मिला था की आग उसका कुछ नहीं बिगाड़ सकता हिरण्यकश्यप ने होलिका को आदेश दिया की तुम प्रहलाद को लेकर आग में बैठ जाओ जिससे ये मर जाये. होलिका ने ऐसा ही किया लेकिन भगवान विष्णु की ऐसी कृपा की होलिका जल कर राख हो गयी और प्रहलाद को कुछ भी नहीं हुआ.इसी दिन को हम होली के रूप में मनाते हैं. होली नाम होलिका के नाम पर पड़ा था और इसी दिन हम हर साल होलिका दहन करते हैं क्यूंकि ये दिन अच्छाई पर बुराई की जीत का दिन है.जब इससे भी प्रहलाद की मौत नहीं हुई तो हिरण्यकश्यप ने खुद उसे मारने का सोचा और अपनी तलवार से उस पर वार किया लेकिन वो तलवार खम्बे पर जा लगी जिससे उसमे से भगवन विष्णु नरसिंघा के रूप में निकले जिसमे वो आधे इंसान और आधे जानवर थे और वो वक़्त रात होने के थोड़े पहले का समय था जो की दिन में भी नहीं आता और फिर विष्णु भगवान् उसे दरवाजे के पास चौखट पर लेजाकर अपने नाखूनों से उसका पेट फाड़ कर उसका वध कर दिया क्युकी चौखट न घर के अंदर की जगह है न ही बाहर की और नाख़ून कोई हथियार नहीं. इस तरह भगवान ने एक और राक्षस का वध कर इस संसार को पाप से मुक्त किया
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